A1बीटाकेसिन तथा A2 बीटाकेसिन दूध – (देसी और विदेशी गाय के दूध)  

पिछले दिनों हमारे साढूभाई एवं साली साहिबा का आना हुआ। चाय के बाद मैंने सुना भाई सा: साली साहिबा से पूछ रहे थे यहाँ तो सभी दूध A2 होगा या A1 भी मिलने लगा! हमारे घर सिवनी मध्य प्रदेश में तो हमेशा हमने घर में गाय, भैंस पाली थीं। हम गाय भैस की सेवा भी करते थे। पर कभी हमने A2, A1 दूध नहीं सुना था।

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 आगरा का धमाल-हिन्दी का बवाल

 १९५०-५१ में भारत का संविधान बन चुका था। हिन्दी राज-भाषा बन गयी थी।

आगरा प्रिंटिंग प्रेसों का बादशाह था। बहुत प्रिंटिंग प्रेसें थीं वहां। पुराने मध्यप्रदेश में दो माध्यम स्वीकृत हुए; हिन्दी और मराठी। मराठी तो चली गयी पूना के पास और हिन्दी आयी आगरा के पास। हिन्दी की तो अब तक दो ही प्रेस थीं एक बनारस-कलकत्ता की गीता प्रेस और दूसरी आगरा की। सरिता पत्रिका आगरा में ही छपती थी। और इधर उधर की पत्र पत्रिकाएं बम्बई, और बनारस में छपती थीं।

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तीन शादियाँ – तीन रंग

हमारे पिता जी १९२८ से सिवनी जिले में वकालत कर रहे थे। और अच्छे वकीलों में गिने जाते थे। ज़माना ज़मींदारी का था। बरघाट और सिवनी के बहुत से मालगुजार पिताजी के मुवक्किल थे। गावों में ज़मीन जायदाद और मार-पीट के सिविल और फौजदारी दोनों तरह के बहुत मामले हुआ करते थे। पिताजी की वकालत अच्छी चलती थी। चाचा चाची सहित हम लोगों का बड़ा परिवार था।

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हजारी महाराज

आज सवेरे सवेरे कोई नौ साढ़े नौ बजे, बड़ा ताज्जुब था कि हमारे घर के सामने से एक लाश निकली। लाश खून से सनी हुयी हाथ ठेले में बैठी हुयी-सी थी।

दो तीन बातें बड़ी विचित्र थीं; एक तो शव बांस की ठठरी में बंधा, लेटा हुआ होता है! वह बैठा हुआ था। 

घर के सामने की सड़क से तो एक भी शव-यात्रा कभी नहीं निकली थी। सड़क और हमारे घर के बीच शंकर जी के चबूतरे थे। बड़ा चबूतरा पत्थर की सिनाई वाला ऊंचाई में बड़ा था। जिसके बीचो-बीच तीन इंच नीचे, प्लेटफार्म में दो पत्थर की जिलहरियों में पत्थर के दो बड़े शिव लिंग रखे थे। किनारे पर एक पाँच फुट का तुलसी-कोट था।

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आचार्य रजनीश

आचार्य रजनीश करेली-नरसिंहपुर के रहने वाले थे। उन्होंने सागर जाकर विश्वविद्यालय के शिक्षण विभाग से पढ़ाई करके बी.ए. पास कर लिया तो माता पिता अपनी आर्थिक स्थिति को देखकर आगे न पढ़ने कह दिया।

पर उन्हें तो पोस्ट ग्रेजुएशन करना था। होशियार थे; और उनके विभागाध्यक्ष भी चाहते थे, पोस्टग्रेजुएट कर लें। तो विश्वविद्यालय में ही लेक्चरार बन सकते हैं। यूनिवेर्सिटी की स्कालरशिप के बारे में उन्होंने पता किया।

रजनीशजी से कहा कि “मैंने तुम्हारे लिए युनिवेर्सिटी की स्कालरशिप पता किया है।

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गोत्र पर चर्चा

मेरे एक मित्र थे; लोगों का हाथ देखकर भविष्य बताया करते थे। जातक के जन्म का सही समय पूछ कर कुण्डली बना देते थे। तथा लड़के लड़कियों की कुण्डली के विवाह हेतु मिलान भी किया करते थे।

मेरे पिता जी भी तर्पण करते, या अन्य पूजा अनुष्ठान करते तो स्वयं के गोत्र का उल्लेख किया करते थे। मेरे मन में सहज जिज्ञासा जागती कि यह गोत्र क्या होता है?

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छठवीं राज कुमारी – कहानी बचपन में सुनी हुयी-4

बहुत पुराने ज़माने की बात है जब छोटे छोटे राज्य होते थे। एक बड़ा भला और दयालु राजा अपने राज्य में राज करता था। उस राजा का कोई बेटा नहीं था। पर छः बेटियाँ थीं। राजा उन्हें बहुत प्यार करता था। अक्सर समय निकाल कर वह शाम के समय उन सबको अपने पास बुलाकर उनसे बात किया करता। सब लोग साथ में बैठ कर कहानियां सुनाते, गाना गाते, कोई खेल खेलते और हंसी खुशी समय बिताते थे।

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मैं सेर-इक काकुन खाई – कहानी बचपन में सुनी हुयी-3

(यह कहानी मैंने अपनी दादी से सुनी)

एक किसान ने अपने खेत में चावल बोया था। जब फसल पक गयी तो उसे काटा जाने लगा। तब चिड़िये झुण्ड की झुण्ड आतीं खेत में गिरे हुए दानों को चुगतीं। किसान आता तो सब फुर्र से उड़ जातीं। एक चिड़िया के बच्चे गंगा के किनारे किसी वृक्ष के घोंसले में रहते थे। वह कुछ दाने अपने बच्चों के लिए चुगने में इतनी मशगूल हो गयी, कि किसान कब आया और उसे पकड़ लिया, वह जान नहीं पायी। बाकी चिड़ियें फुर्र से उड़ गईं। यह बेचारी पकड़ी गयी। फसल काटने के बाद इतने दिनों से झुण्ड के झुण्ड चिड़ियों के आकर तमाम खेत में कटाई के बाद के गिरे दोनों को चुग जाते। मजदूर लगाने पर भी किसान को जितना मिलना चाहिए था, मिल नहीं रहा था। किसान खीज चुका था। चिड़िये थीं कि जैसे ही कोई पास आया तो फुर्र से उड़ जातीं। किसान और मजदूर सब खीज चुके थे | इस बेचारी चिड़िया का नसीब ही खराब था जो किसान की पकड़ में आ गयी।

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राजा के बकरा ऐसे कान- कहानी बचपन में सुनी हुयी-2

( कहानी उस ज़माने की है जब राजे रजवाड़े हुआ करते थे )

एक राजा का नाई बूढ़ा होने के कारण मर गया। तो मंत्रियों ने नए नाई की व्यवस्था की। नए नाई का नाम था भिन्ना नाऊ।

जब वह राजा के बाल काटने आया तो उसे राजा के कान देख कर बहुत हैरत हुयी। राजा के कान बड़े भी थे और लटकते भी दिखते थे। राजा जहां कहीं भी जाते चाहे दरबार में जाना हो या सैर सपाटे में उनके माथे पर मुकुट और साफा बंधा होता। साफे को इस होशियारी से बांधा जाता कि राजा के कान या तो दीखते ही नहीं थे, या दीखते तो पूरे नहीं दिखते थे। पर बाल काटने वाले नाई से तो यहाँ सच्चाई छुप नहीं सकती थी।

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हिरण और सियार की दोस्ती – कहानी बचपन में सुनी हुयी -1

एक समय की बात है जंगल में एक हिरण अकेला भटकता हुआ किसी झाड़ के नीचे चला आया। उस झाड़ पर एक कौआ रहा करता था। दिन में तो वह यहाँ वहां घूमता फिरता। जहां कुछ चुगने मिल गया खाता। पानी मिलता तो पीता। शाम होते उस झाड़ के ऊपर लौट आता। एक दिन उसने शाम के वक्त झाड़ के नीचे एक हिरण को खड़ा देखा। तोकुतूहलवश झाँक कर देखा और हिरण से पूछा, “ डर लग रहा है? डरो मत मैं यहीं झाड़ के ऊपर रहता हूँ। दूर दूर तक देख लेता हूँ। अगर कुछ आशंका होगी मैं देखकर तुम्हें ताकीद कर दूंगा। समय रहते तुम भाग कर छुप जाना।

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