हजारी महाराज

आज सवेरे सवेरे कोई नौ साढ़े नौ बजे, बड़ा ताज्जुब था कि हमारे घर के सामने से एक लाश निकली। लाश खून से सनी हुयी हाथ ठेले में बैठी हुयी-सी थी।

दो तीन बातें बड़ी विचित्र थीं; एक तो शव बांस की ठठरी में बंधा, लेटा हुआ होता है! वह बैठा हुआ था। 

घर के सामने की सड़क से तो एक भी शव-यात्रा कभी नहीं निकली थी। सड़क और हमारे घर के बीच शंकर जी के चबूतरे थे। बड़ा चबूतरा पत्थर की सिनाई वाला ऊंचाई में बड़ा था। जिसके बीचो-बीच तीन इंच नीचे, प्लेटफार्म में दो पत्थर की जिलहरियों में पत्थर के दो बड़े शिव लिंग रखे थे। किनारे पर एक पाँच फुट का तुलसी-कोट था।

इस चबूतरे की बहुत मान्यता थी। पास पड़ोस के लोग किसी यात्रा में जाते तो यात्रा सफल एवं निरापद हो, इसलिए नारियल रख के जाते, तथा लौट आने के बाद, आकर नारियल फोड़ते और प्रसाद बाँट कर थोड़ा घर भी ले जाते थे।

 इस बड़े चबूतरे से लगा हुआ छोटा चबूतरा था। यह था तो बड़ा और गोल घेरे वाला।पर बड़े चबूतरे से दो ढाई फुट नीचा था। इस छोटे चबूतरे के बीचो-बीच मिट्टी वाला गोल घेरा था। इस घेरे में एक पीपल का पुराना पेड़ लगा हुआ था।

यह पीपल का पेड़ बहुत पुराना था। इतना कि इसकी सूखी डगालों से छिल्पियाँ और छोटे -छोटे टुकड़े गिरने लगे थे।

जब यह अपने आप टूट कर एक सूखी सी पींड़ भर रह गया, तो हमारे पिता जी ने नागपुर से लाकर अशोक का पेड़ रोप दिया था। जो अब आज बहुत बड़ा और पुराना  हो गया है। 

जहां से बड़ा और छोटा दोनों चबूतरे जुड़े हैं। वहां बड़े चबूतरे में पत्थर में सूर्य उकेरे हुए हैं। पत्थर में एक गढ़ा सा बना है। गढ़े के एक तरफ पत्थर में किरणें कटी हुयी हैं।

इसमें पूजा करने वाले लोटे से पानी की धार छोड़ते हैं।

छोटे चबूतरे की दूसरी तरफ कोई पच्चीस-तीस फुट जगह छोड़ कर चित्रगुप्त मंदिर बना हुआ है। बड़े चबूतरे के दोनों तरफ पूरब की ओर, हमारे घर की तरफ चबूतरे पर चढ़ने के लिए पत्थर की सीढियां बनी हुयी हैं। 

संभवत: इन्हीं देव स्थानों के कारण यहाँ से नहीं कभी कोई शवयात्रा नहीं निकली।

अब आज चबूतरों के बगल से ऐसी शव यात्रा निकलना बहुत अचरज की बात थी।

सब लोग अपने घर से निकल कर घरों के बाहर सामने आ गए। शव यात्रा दक्षिण की ओर से आयी और उत्तर की ओर महावीर सिनेमा के सामने वाली सड़क से होते हुए शुक्रवारी बाज़ार की तरफ निकल गयी। हाँ शव के पीछे लोगों की कतार फर्लांग डेढ़ फर्लांग की निरंतर चल रही थी ।

जब शव यात्रा निकल गयी। हम बच्चों को पता चला, हजारी महाराज की शव यात्रा थी। हजारी महराज गल्ला बाज़ार के आढतिया थे।

सिवनी का गल्ला बाज़ार सिवनी-बरघाट क्षेत्र का बड़ा मार्केट है। इस क्षेत्र में गेहूं, चावल, चना, मसूर और तेवड़ा उत्पादक क्षेत्र का बड़ा बाज़ार भरता है। किसान यहाँ अपना दाना लेकर आते हैं। और आढतियों के सहारे माल बेचते हैं । आढतिये किसान के माल को अपने हमालों से छन्ना लगवाकर ग्रेडों में बाँट देते हैं। और उसके अनुसार उनका माल खरीदते हैं।वास्तविक रूप में ये आढतिये और खरीददार सेठ, अपढ़ किसानों को बुद्धू बनाने और ठगने में ज़रा भी संकोच नहीं करते।

माल गिरवा कर  किसानों की ज़रूरतों  का अंदाजा लगा लेते हैं। और फिर उनका दोहन ही नहीं करते; उनका खून निकाल लेते हैं। अपने हमालों से माल गिरवा लेते हैं। फिर इधर उधर घूमने लगते हैं। चाय – नाश्ता के बहाने, या रेट चढ़ने का इंतज़ार करने के बहाने।

माल को ग्रेड में बदल लेने के बहाने से किसानों लो लूटा करते हैं। किसान के घर  लौटने के बारे में पहले पता लगा लेते हैं। फिर कभी-कभी माल ढिलवा कर; माने बैल गाड़ी से माल उतरवा कर, विश्वास दिला लेते हैं। फिर किसान का समय बरबाद करते हैं।

दो तीन किसानों की तुलाई साथ करवाने के बाद, जिसे जल्दी पैसा चाहिये,उसे देर लगवाकर, चुकारा न होने का कह कर अचानक मार्किट टाईट हो जाने का बोल कर खड़ा रखते हैं।

दो तीन किसानों की तुलाई साथ करवाने के बाद, जिसे जल्दी पैसा चाहिये,उसे देर लगवाकर, चुकारा न होने का कह कर अचानक मार्किट टाईट हो जाने का बोल कर खड़ा रखते हैं।

दो तीन किसानों की तुलाई साथ करवाने के बाद, जिसे जल्दी पैसा चाहिये,उसे देर लगवाकर, चुकारा न होने का कह कर अचानक मार्किट टाईट हो जाने का बोल कर खड़ा रखते हैं।

लाखों हत्कंडे हैं इन आढतियों के पास।

वह किसानों को ही नहीं खरीद-दार सेठों को भी लूटने से नहीं चूकते। पूरा गल्ला मार्किट अपने हाथ में रखते हैं।

हजारी महाराज भी एक आढतिया थे। जो यह अतिचार पसंद नहीं करते थे। न्याय पूर्ण और दयालु थे। दमदार थे और पहलवान थे।

देवी माँ  के भक्त थे। दूसरे आढतियों और सेठों से भिड़ जाते थे।

धीरे-धीरे गल्ला बाज़ार हजारी महराज से नाराज़ रहने लगा।

कई तरह से उन्हें ताकीद की गयी।

वह भीरु नहीं थे। न्यायपूर्ण रहने का उनका संकल्प डिगने वाला नहीं था।

प्रतिद्वंदी आढ़तिये ही नहीं; बड़े-बड़े सेठ उन से रुष्ट हो गए। समझाया, बुझाया।

पर देवी भक्त हजारी महाराज निडर था। उसे अन्याय बर्दाश्त नहीं था।

देवी भक्त था; सुबह सवेरे नहा धोकर कटंगी नाके  के पार देवी मंदिर में पूजा किया करता था।

उस दिन भी वह पूरे ध्यान में बैठा था।

सेठों के भेजे गए हमलावर गुंडे छुपे बैठे थे।

पूजा समाप्त हुयी। महाराज माँ के पैर पड़ने झुका ही था, कि गंडासे से दो वार सीधे गर्दन पर हुए।

सर अलग गिर गया। खून का फव्वारा देवी चरणों को धो गया।

पूरा शहर स्तब्ध था।

सारे शहर में पोलीस के संरक्षण में ठेले में रख कर उनकी सर कटी लाश घुमाई गयी !

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One Reply to “”

  1. I am a student of Shri R.K. Verma Sir and Mrs Verma Madam at Kalaniketan during 1963-67. Still I am in communication with Sir and Madam. I had requested Sir for allowing me to reproduce his blog in out monthly Web-Bulletin available at http://gyanvigyansarita.in/eBulletin.html.

    This bulletin is to create awareness among elite section of society about their Personal Social Responsibility (PSR) and the difference it can create. It is purely non-organizational, non-remunerative, non-commercial and non-political educational initiative targeting at Unprivileged students and to groom in them competence to compete.o

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    Dr Subhash Joshi
    Coordinator
    Gyan Vigyan Sarita

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