A1बीटाकेसिन तथा A2 बीटाकेसिन दूध – (देसी और विदेशी गाय के दूध)  

पिछले दिनों हमारे साढूभाई एवं साली साहिबा का आना हुआ। चाय के बाद मैंने सुना भाई सा: साली साहिबा से पूछ रहे थे यहाँ तो सभी दूध A2 होगा या A1 भी मिलने लगा! हमारे घर सिवनी मध्य प्रदेश में तो हमेशा हमने घर में गाय, भैंस पाली थीं। हम गाय भैस की सेवा भी करते थे। पर कभी हमने A2, A1 दूध नहीं सुना था।

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हजारी महाराज

आज सवेरे सवेरे कोई नौ साढ़े नौ बजे, बड़ा ताज्जुब था कि हमारे घर के सामने से एक लाश निकली। लाश खून से सनी हुयी हाथ ठेले में बैठी हुयी-सी थी।

दो तीन बातें बड़ी विचित्र थीं; एक तो शव बांस की ठठरी में बंधा, लेटा हुआ होता है! वह बैठा हुआ था। 

घर के सामने की सड़क से तो एक भी शव-यात्रा कभी नहीं निकली थी। सड़क और हमारे घर के बीच शंकर जी के चबूतरे थे। बड़ा चबूतरा पत्थर की सिनाई वाला ऊंचाई में बड़ा था। जिसके बीचो-बीच तीन इंच नीचे, प्लेटफार्म में दो पत्थर की जिलहरियों में पत्थर के दो बड़े शिव लिंग रखे थे। किनारे पर एक पाँच फुट का तुलसी-कोट था।

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समय के अलसाये प्रवाह में तैरता हुआ…

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समय के अलसाये प्रवाह में तैरता हुआ

मन मेरा बढ़ता है, निरखता

बीते हुए रिक्त अंतराल को.

विचरते मार्ग से उस विशाल रिक्ति के

उभरते हैं चित्र मेरी आँखों के आगे.

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देवी के ‘जस’

बात पुरानी है| करीब साथ साल पहले जब मैं सातवीं – आठवीं में पढ़ता था, मुझे अजीब सी बीमारी हो गयी सारे बदन में चिलकन सी हुआ करती थी|  अंतिम निदान आयुर्वेद में मिला | किन्तु जैसा आयुर्वेद के इलाज में होता है,समय कुछ ज़्यादा लग जाता है | तो मुझे भी आठ दस दिन की छुट्टी लेनी पड़ी|  किस्सा उसी दौरान का है|  हमारे घर के पीछे पूर्व दिशा में देवी जी का मंदिर था| मंदिर के सामने की सड़क कटंगी रोड कहलाती थी|

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वह कौन सी तान है

वह कौन सी तान है जो आप्लावित करती है
मेरा जीवन, केवल मैं जानता हूँ और मेरा हृदय
जानता है.
मैं क्यों निरखता हूँ और क्यों बाँट जोहता हूँ
क्या माँगता हूँ और किससे, केवल मैं जानता हूँ
और मेरा हृदय जनता है.

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