समय के अलसाये प्रवाह में तैरता हुआ
मन मेरा बढ़ता है, निरखता
बीते हुए रिक्त अंतराल को.
विचरते मार्ग से उस विशाल रिक्ति के
उभरते हैं चित्र मेरी आँखों के आगे.
निसर्ग से व्यक्ति तक…
समय के अलसाये प्रवाह में तैरता हुआ
मन मेरा बढ़ता है, निरखता
बीते हुए रिक्त अंतराल को.
विचरते मार्ग से उस विशाल रिक्ति के
उभरते हैं चित्र मेरी आँखों के आगे.