सांप का ज़हर

आपने सांप के ज़हर का उतारा जाना देखा है?

चलिए हम आपको दिखाते हैं।

हमारे घर के पीछे एक महलनुमा भवन है।सामान्यतया इसे दीवानखाना कहा जाता है।बाहरी दीवारें पत्थर की बनी हैं ।बाहर बड़ा मैदान है।पीछे की ओर बावली है।और घुड़सालों की लम्बी कतार है।अब घोड़े तो नहीं है।इन घुड़सालों में नौकर रहने लगे हैं।बहुत से तो खाली ही हैं।

दीवान खाना जाने और देखने का पहला मौका हमें तब मिला, जब दीवान साहब ने रूखड़ के जंगल से एक शेर को मारा।और उस मरे हुए शेर को जीप की खुली ट्राली में डालकर दीवान खाने लाया गया। जीप दीवान खाने के सामने के मैदान में खड़ी की गयी।और उस मारे हुए शेर को नापा गया।पूंछ को छोड़कर पूरे अठारह फुट का था वह शेर।

फिर शेर को भवन के एक बड़े से बैठक खाने में लाया गया।उसक मरे में तमाम शिकार किये हुए शेरों के सिर सहित पकाए हुए चमड़े सजे हुए थे।

बहरहाल आज हम दीवान खाने के बाहर भीड़ के साथ एक तमाशा देख रहे हैं। किसी एक नौकर को आज सुबह, जब वह बावली में मुंह धोने गया तो पानी में हाथ डालते ही, उसे किसी चीज़ ने काट खाया। नौकर चीख कर खड़ा तो हुआ।पर फिर वहीं गिर गया।उसके दाहिने हाथ की एकअंगुली की खाल नुची हुयी थी।

अनुमान था कि बावली में किसी ज़हरीले नाग ने उसे नोच खाया है ।भीड़ ज़हर उतारे जाने को देखने खड़ी हुई थी।खबर लगने पर मैं और मेरा छोटा भाई सतीश भी दौड़ पड़े।कई ज़हर उतारने वाले आ चुके थे।पर कोई भी सांप की लहर को अभी तक जगा नहीं पाया था।

अब एक बड़े सिद्ध मांत्रिक की कोशिश चलर ही थी।

मान्त्रिक जोर जोर से मंत्र पढ़ा रहा है। हमने भी मंत्र सुना, काली माई का बोरिया ….

और इसी तरह के मामूली से लगने वाले कुछ शब्द। मंत्र बार बार बोले जा रहे हैं। और मान्त्रिक की प्रतिष्ठा जैसे दांव पर लग गयी है।  थोड़ी सी कुछ लहर जागी भी।

जिस व्यक्ति को सांप ने काटा था, वह मूर्छित था। पानी के छींटे भी मारे गए थे पर होश में नहीं आया था।

अब बोल पड़ा।

और पूछा, “कहाँ है मेरा प्रसाद?”

किसी आदमी को दौड़ाया गया। पास ही शुक्रवारी बाज़ार में दूकानें अभी खुल नहीं पायीं थीं।आदमी लौट नहीं पाया था। और सेकेण्ड – दो सेकेण्ड में लहर आ आकर पूछ रही था, “ कहाँ है, प्रसाद ?”

सोमान्त्रिक भी घबरा गया।अब की जब लहर ने वही प्रश्न दोहराया। तो घबरा कर उसने वही नारियल जो अपने गुरु के नाम रखा था, लहर को देना चाहा।

तो लहर, माने वही आदमी, जिसे सांप ने काटा था, बोली, “मरना है ?”

पूरी भीड़ सन्न!

मान्त्रिक ने कान को हाथ लगा कर, माफी माँगी।

इतने में वह आदमी नारियल ले आया। बल्कि दो नारियल हो गए; एक और आदमी फुर्ती से दौड़ गया था। वह भी एक ले आया।

दोनों ही नारियल उस सांप के काटे आदमी को दिए गए। उसने दोनों नारियल हाथ में ले लिए।पर बोल पड़ा, “नहीं छोडूंगा ! नहीं छोडूंगा।

“इसे मैं नहीं छोडूंगा।

यह बहुत झूठा है।

नहीं”…

स्पष्ट है, लहर बहुत गुस्से में थी।

अब इस आदमी का मरना पक्का था।

मान्त्रिक चिरौरी कर रहे थे। अब कभी ऐसी गलती नहीं होगी। आश्वासन दे रहे थे। . मिन्नत कर रहे थे, कि इसे एक बार और माफ़ कर दिया जाये।

कोईउत्तरनहीं!

कि उस सांप काटे आदमी ने कहा, “ आओ मेरे साथ!” और चल पड़ा सीधे घुड्सालों की ओर!

करीब डेढ़ सौ मीटर का फासला पूरी भीड़ ने सकते में पार किया।

वह आदमी घुड़साल के एक कमरे की देहरी पर पहुँच कर रुक गया।

दूर कमरे की दीवार की ओर इंगित कर वह बोला,

“मैं वहां बैठा था।

इसने हाथ जोड़ा।

बोला, चले जाओ महाराज। नारियल परसाद चढ़ाऊंगा।“

“मैं चला गया।

पर यह भूल गया।

मैंने स्वप्न में आकर इसे याद दिलाया।

इसने फिर वादा किया।

पर फिर भुला दिया।

इसका मन बदल गया।

सोचने लगा नारियल नहीं चढ़ाऊंगा।

इसे मैं नहीं छोडूंगा।“

खुद वादा किया। अब मुकर रहा है!

बहुत माफी माँगी गयी उस आदमी की तरफ से कि अब ऐसा कभी नहीं होगा।

अनुनय, विनय का लंबा दौर चला।

तब जाकर लहर मानी।

मांत्रिकों के कहने पर उस आदमी ने देहरी पर झुक करा प्रणाम किया।

दोनों नारियल देहरी पर फोड़े।

थोड़ा कुछ प्रसाद वहां रखा। और मांत्रिकों की ओर आगे निर्देश के लिए मुड़ा।

मांत्रिकों ने उसे सारी भीड़ को प्रसाद बांटने कहा।

उस आदमी ने अपने दोनों हाथों के बीच दाब कर एक के बाद एक दोनों गरी तोड़ीं।  फिर उनके छोटे छोटे टुकड़े किये। और जितने लोग वहां थे सबको को एक एक टुकड़ा प्रसाद बाँटा।

एक हाथ की अंगुली तो काटे जाने से नुची हुयी थी। जिसमें सांप का ज़हर लगा हो सकता है। ऐसा सोचकर हम लोग जल्दी से घर की ओर मुड़ गए। तय किया कि घर पीछे की तरफ से पास पड़ेगा। जिससे हम घर जल्दी पहुँच जाएंगे।

पर मेरे मन में खौफ भर गया था इस गुस्सैल सांप का; लगा ज़रा भी अवहेलना हुयी तो कहीं वह हमसे न नाराज़ हो जाए।

अत: घर के निकट पहुंचे तो मैंने सतीश से कहा; मैं प्रसाद खाता हूँ। तुम अपना वाला मत खाना।

दौड़ कर जाना, और अम्मा को यहाँ बुला लाना।

अगर मैं ठीक रहा, तो फिर तुम भी अपना प्रसाद खा लेना।

 

…………

6 Replies to “सांप का ज़हर”

  1. Baalsulabh jigyaasa ko shant karne hetu janmi itni purani ghatna ne jaise baalman par prabhav daala, use jas ki tas ukerta chitran aur “baal man” ki chaitanyta ko bhi vaise hi pradarshit kar gays…!!👌👌👌👏👏👏Awesome..👍🙏

    Like

  2. चल-चित्र की भांति एक-एक चित्र उभर कर सामने आ गया , मैं हर लम्हा जीता रहा | मन श्रद्धा और प्यार से सराबोर हो गया | सांप के जहर से दूषित प्रसाद खाने की बारी आयी तो बड़े भैया ने स्वयं खा लिया छोटे भाई को सहेज कर कि तुम मत खाना |मतलब, जो भी होना है मुझे हो पर छोटा बचा रहे |
    हाँ एक बात और सांप के जहर वाला प्रसाद खा लेने पर निर्देश कि अम्मा को तुरंत बुला लाओ | कि चाहे जो हो अम्मा तो साप के जहर वाले प्रसाद से भी बचा सकती हैं ?… ऐसे हैं मेरे बड़े भाई ! प्रणाम |

    Like

  3. Very interesting story. Maza aa gaya padh ker. Deewankhana gher ke liye peechhe ka rasta sab aankhon ke samane aa gaya..👏🏻👌👌🙏

    Like

Leave a comment