रामचरन

क्यों रामचरण?

इधर आओ।

इस बार फिर फेल!

कौन सी बार है यह?

पढ़ते हो नहीं।

रामचरन…?

अरे वही, चंपो दीदी का अठारह उन्नीस साल का बेटा!

रामचरन को थुल-थुल तो नहीं कह सकते। पर वह अपनी उम्र के ख़याल से, मोटे जरूर थे।

गप्पू भैया उन्हें ‘बोदा’ कहते थे।

यूं भी वह स्मार्ट तो कहीं से नहीं कहे जा सकते थे।

मैट्रिक में वह छह बार फेल हो चुके थे। यह उनकी सातवीं कोशिश थी।

सवाल किया था बचऊ दादा ने। वह गोंदिया में (अब महाराष्ट्र में)

स्कूल में हैडमास्टर थे।

रामचरन मेधावी न सही, पर थे पूरे तहजीबदार।

पास आकर बोले, “पढ़ते हैं, दादा!

और पेपर भी ठीक हुआ है।“

“क्या पढ़ते हो!

और क्या ठीक हुआ है!

मैं तो अभी जांच के आ रहा हूँ। फिर फेल हो।

कहाँ हैं , चंपो कहाँ हैं?

पढना-लिखना तुम्हारे बस का नहीं है।

कोई नौकरी कर लो।“

रामचरन तो खुद यही चाहते थे। कोई सिलसिला हो। शादी कर लें, और गृहस्थी में लगें।

पर माता पिता के अरमानों के आगे लाचार थे।

पिताजी लड़ाई के ज़माने में अंग्रेजों की सेना के सिविल प्रभाग में नौकरी करते थे। अदन,

बर्मा सब, देख आये थे।

चंपो दीदी को सब नालिज थी। (सुबह से चश्मा लगाके पेपर की तलाश में निकल जातीं और दोपहर भर सब कहीं खबरें बताती घूमतीं। हम बच्चे उन्हें ‘आल इंडिया रेडिओ’ कहते थे.)

कायस्थ जाति के लिए पढ़ाई के महत्व को दोनों भली भाँति समझते थे।

ऐसी अवस्था में अनंतकाल तक धैर्य ही परिवार के लिए एकमात्र संबल रह गया था।

रामचरन कभी किसी से किसी बात पर नाराज़ नहीं होत। गप्पू भैया तो क्या मोहल्ले का

बच्चा भी उन्हें ‘बोदा’ कहे, वह बुरा नहीं मानते थे। वह तो दीदी थीं जिनको बुरा लग जाता था।

रामचरन भी माँ को दीदी ही कहते थे।

पिताजी सेना से रिटायर होने के बाद नागपुर के लक्ष्मी बैंक में नौकरी करने लगे थे।

दीदी और उन्हें हमने अक्सर लोहे की छोटी संदूक और उसपर दरी में बांधा गया बिस्तर

लेकर बस स्टैंड जाते देखा है।  मोहल्ले में भी वह पेंट-शर्ट पहने दिखते थे। यात्रा में गले

में टाई और लग जाती थी।

हाँ, तो दीदी को बहुत बुरा लग जाता और वह लड़ने पहुँच जातीं।

गप्पू भैया को एक और मौका मिल जाता। वह कहते, वह बोदा तो है ही….

हर तरह से बोदा है।

तीखी बहस छिड़ती।

मोहल्ले के अन्य लोग भी शरारतन रामचरन को बोदा और बाँगा ठहराने लगते।

अंत में बेचारी चंपो दीदी एक तरफ हताश बैठ जातीं। आँखों में आंसू भर आते।

एक दिन उन्होंने वकील चाचा से अपनी व्यथा बतायी और वकील चाचा ने अगले दिन

सुबह सवेरे गप्पू भैया से रामचरन को न चिढ़ाने का वादा ले लिया, तब कहीं दीदी को

राहत पहुँची।

अब रामचरन के लिए नौकरी की तलाश शुरू हुयी। एक बार जब जनपद सभा के बड़े

बाबू नें रामचरन को गाँव के प्रायमरी स्कूल का हेडमास्टर बन जाने का प्रस्ताव दिया था

तो दीदी ने उसे ठुकरा दिया था।

पर अब उनके लिए चपरासी तक की नौकरी ढूंढी जाने लगी।

बमुश्किल रेलवे के पी डब्ल्यू आई वर्मा साहब से रेलवे में गैंगमैन की नौकरी का

इंतज़ाम इस शर्त पर हुआ कि गैगमैन के रूप में रख कर रामचरन को कुछ

लिखापढ़ी का हल्का काम दे दिया जाएगा। पर वह गैंग में वर्मा साहब से कभी अपने

परिचय का खुलासा नहीं करेंगे।

पर रामचरन कब इस ऊंची नौकरी के लिए तो अपनी पहुंच को महत्व देने से रुकते। दो ही दिन में हर कोई उनकी पहुँच से वाकिफ हो गया।

शर्ट तो इसलिए रखी गयी थी कि उन्हें लिखने पढने का हल्का काम दिया जा सके।

अब उन्हें भी बाकी गैंग के साथ रेलपातों को उठाने, ढोने और ट्रैक पर बिठाने के काम में भेज दिया गया।

रामचरन को यह भारी काम रास नहीं आ सका। और वह वापस घर चले आये।

अब न तो दीदी जीवित थीं और न ही पिताजी।

रामचरन कई दिन ऐसे ही भटकते रहे। कभी किसी ने थोड़ा कुछ खिला दिया। कभी किसी और ने। कुछ ही दिनों में वह बहुत झटक गए। पर फिर किसी ने कोशिश करके गाँव के किसी प्रायमरी स्कूल में उनको टीचर बनवा दिया।

सतेन्द्र ने मुझे बताया, “अरे दादा, इसे छपारा में मास्टरी मिल गई थी।

“पट्ठा, छोड़ कर चला आया।

“कहता है, “कोट की जेब में लड़के धूला भर देते थे!”

लौट कर आये, तो रामचरन हमारी परछी में रहने लगे। खाने की व्यवस्था कभी किसी के घर हो जाती तो कभी किसी और के घर। कभी खुद भी बना लेते।

एक बार मैंने उन्हें सब्जी खरीदते देखा। पैसे देने लगे तो सब्जीवाली बाई ने उनसे प्रश्न किया, ”काय भैया, तुमई खाना-माना बनात हो? बाई नहीं दिखानी!”

रामचरन अब उतने भी जवान तो नहीं रहे थे। उम्र ढल चली थी। शायद यह विषय उनके मन में कभी आया ही नहीं था।

विचार करते हुए से बड़े निरीह भाव से बोले – “ नई बाई, नहीं कर पाए।

“कोई होय तो बताना।

“न सही जात की; कोई भी होय….”

……

 

3 Replies to “रामचरन”

  1. Very touching story, beautifully presented.. Ramcharan bhale aur seedhe vyakti they, per kaash kaam me man lagta aur achchhe se kerte to achchha jeevan jeete..

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    1. Ramcharan ka vyaktiv aankho me chha gaya..!! Kuch gudgudaaya aur kuch bheetar hi bheetar bhigo bhi gaya,😀/😧
      ek tees ubhaarte huye…!!🙏🙏👍🌷✔

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  2. Abhiwyakti ke madhyam se Ramcharan ki kahani koi kalpanik kahani nahin hai yah wastawik kahani hai jo 70/80 sal pahleke samaya ka uss vatavaran ka sahi digdarshan karata hai ki parasthitiyan thi Uss samaya ki mohalle ki puri photo samne aagai . Parasthityan kaise karwat leti hai.

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