गणेश जी का चित्र या मूर्ति खरीदते वक्त ध्यान रखिये की गणेश जी की सूँड़ बाँयीं ओर को मुड़ी हो. अर्थात् आप मूर्ति / चित्र को देखें तो आपकी दायीं ओर को मुड़ी दिखे. ऐसी मूर्ति वामवर्ती कहलाती है. घर में यह वामवर्ती मूर्ति अथवा फोटो शांति और समृद्धि लाती हैं. ऐसी मूर्तियों / चित्रों में गणेश जी की चन्द्र-शक्ति क्रिया शील रहती है. जो सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की प्रगति कारक बनती है.
गणेश जी की मूर्ति या चित्र से दो प्रकार की शक्तियां नि:सरित होती है. चन्द्र-शक्ति और सूर्य-शक्ति. चन्द्र-शक्ति गणेश जी के बाएं सुर से निकलती है, जो मनुष्यों के लिए शांत तथा लाभकारी होती है. और सूर्य-शक्ति दाहिने सुर से नि:सृत होती है तथा अत्यंत प्रबल होती है. सांसारिक मनुष्य के लिए इसे सहन करना कठिन है. अत: द्क्षिणवर्ती मूर्ति घरों में नहीं रखी जाती. ऐसी मूर्ति को मंदिरों और देवालयों में स्थापित किया जाता है, जहां नियमित पूजा-पाठ और अनुष्ठान से, इसे अनुकूल बना लिया जाता है.
द्क्षिणावर्ती मूर्ति यमलोक की दिशा तथा नकारात्मकता की प्रतीक है. यह प्रभाव उन्हीं मूर्तियों में होता है जो उसी स्थान पर तराश कर निर्धारित विधि विधान से बनायी जाए याकि पेंट की जाय जहां वह स्थापित की गयी है.
ऐसा आज कल देखने में नहीं आता. तथापि मूर्ति या चित्र की स्थापना के लिए यही नियम समझना चाहिए की घर में वामवर्ती मूर्ति की ही स्थापना की जानी चाहिए.
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