Why is a Kalash Installed Ceremoniously During a Pooja?/ पूजा में कलश की स्थापना क्यों की जाती है?

         पूजा के विविध उपचार एवं उनके आतंरिक अर्थ:

 कलश

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जब घर में हम किसी प्रकार की पूजा अर्चना अथवा अनुष्ठान करते हैं, अथवा कोई भी मांगलिक कार्य करते हैं. तो उसमें एक पवित्र कलश रखने का विधान है।

आइये इसके मर्म को समझते हैं:

कलश मांगल्य का अनोखा प्रतीक है। जिसे हमारे ऋषि–मुनियों ने सृजा या बनाया है। पूजा की चौकी पर लाल, सफ़ेद अथवा पीले रंग का कोरा कपड़ा बिछाया जाता है। और उस कपड़े पर पूजा करने वाले के दाहिने तरफ कुछ चावल फैलाकर उसके ऊपर ताम्बे, अथवा पीतल का एक लोटा रखा जाता है। उस लोटे के कण्ठ में एक लाल या पीला सूत का मोटा धागा, जिसे कलावा या मौली कहते हैं, लपेट दिया जाता है। अब उस लोटे में जल भर कर उसके अन्दर केशर या हल्दी, अन्न, एक सिक्का, कुश, दूर्वा, पान का पत्ता आदि डाल दिए जाते हैं। फिर लोटे के मुख पर आम के ५, ७, ९, या ११ पत्ते लगाकर ऊपर एक साबूत नारियल उल्टा, अर्थात बूंच वाला हिस्सा ऊपर की ओर कर के रख दिया जाता है। यह ध्यान रखा जाता है, कि नारियल की तीनों आँखे पूजा करने वाले की तरफ हों। लोटे पर स्वास्तिक का निशान भी बना देते हैं। जो मनुष्य जीवन की चारों अवस्था- बाल, युवा, प्रौढ़ तथा वृद्ध का भी प्रतीक है।

लोटे का जल दिव्यता का प्रतीक है। जिसमें पूजा के समय हमारा मन निवास करता हुआ पूजा के माध्यम से सरलता, तरलता प्राप्त कर पवित्र होकर दिव्यता के प्रति अनुरक्त हो जाता है। जल में डूबी हुयी आम की पत्तियें जीवन-शक्ति को दर्शाती हैं। लोटे में डाली गयी दूर्वा, मिट्टी, हल्दी, सिक्का और अन्न रत्नगर्भा वसुंधरा के प्रतीक हैं। कलश को अक्षत बिछा कर रखने का प्रयोजन नकारात्मकता का अवशोषण कराना होता है।

कलश देहधारी मनुष्य का भी प्रतीक है जो पूजा के माध्यम से दिव्यता को प्राप्त करने का आकांक्षी है। और पूजा के उपरान्त देह को मंदिर में परिणत कर लेता है जिसमें दिव्यता का वास, देव स्वरूप हो जाता है।

[संस्कृत का वह मन्त्र जो कलश स्थापना के समय मान्त्रिक बोलते हैं]

सरित: सागरा: शैलास्तीर्थानि जलदा नदा:।

आयान्तु मम भक्तस्य दुरित-क्षय-कारका:

कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठं रूद्र: समाश्रित:।

मूले तस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥२॥

कुक्षौ तु सागरा: सप्त सप्त-द्वीपा वसुंधरा।

ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः साम–वेदोप्यथर्वणः॥३॥

 अंगैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।

देव-दानव-सम्वादे मध्यमाने महोदधौ ॥४॥

उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ! विधृतो विष्णुना स्वयं|

त्वत्त: सर्वाणि तीर्थानि देवा: सर्वे त्वयि स्थिता: ॥५॥

 त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठिता: ।

शिव: स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापति: ॥६॥

 आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा: स-पैतृका:

त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यत: काम-फल-प्रदा: ॥७॥

 त्वत्- प्रसादादिमं कर्म कर्तुमीहे जलोद्भव!

 सान्निध्यं कुरु में देव! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥८॥

(मन्त्र का हिंदी में अर्थ)

{ मुझ भक्त के दुखों को हरने वाले जल प्रदायक नदियें, सरिताएं, पर्वत तीर्थ आवें! कलश के मुख पर श्री विष्णु, कंठ में शंकर निवास करें!कलश के मूल में ब्रह्मा, तथा मध्य में माताएं निवास करें! कलश के गर्भ कोष्ठ में सप्त सागर, सप्त द्वीप, रत्नगर्भा वसुंधरा, ऋग्वेद, यजुर्वेद, साम और अथर्व वेद अपने अंगों सहित देव-दानव-सम्वाद के समय महासागर मंथन द्वारा उत्पन्न हुए तथा  स्वयं श्री विष्णु द्वारा लाये गए कुम्भ में वास करें! (जिस कुम्भ में सभी तीर्थ और देवता विराजमान हैं। तथा श्री विष्णु, रूद्र एवं प्रजापति(ब्रह्मा) प्रतिष्ठित हैं। जहां सभी जन्मधारी, कामना पूर्त करने वाले सूर्य, पवन, पितृ विराजे हैं, वहां मेरे इस कार्य में सम्मिलित होवें और प्रसन्न हो, इसे सफलता प्रदान करें!}

इस प्रकार यह मंगल कलश परमेश्वर सहित सभी देवी देवताओं की उपस्थिति से मंदिर बन जाता है। जल रूपी हमारा मन ईश्वर भावनामृत पाकर विशुद्ध तरलता और सरलता प्राप्त करे, यह प्रतीक है। इसलिए इस पूजा के कलश को मंगल-कलश भी कहते हैं। पूजा के अतिरिक्त भी ऐसे आयोजनों जैसे यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, सत्य नारायण कथा, पाटी-पूजन (या शिक्षा आरम्भ), वास्तु-पूजा आदि में मंगल कलश उपयोग में लाया जाता है।

वास्तु-पूजा में नींव में एक धातु का सर्प और मंगल कलश जिसमें दूध भी मिलाया जाता है, रख दिया जाता है। मान्यता है कि यह पृथ्वी शेष नाग के मस्तक पर रखी हुयी है तो उनके लिए दूध रखकर यह प्रार्थना की जाती है, की भवन निर्माण उनकी सहायता और कृपा से सुंदर और मजबूत बने।

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Image Source : Google

 

2 Replies to “Why is a Kalash Installed Ceremoniously During a Pooja?/ पूजा में कलश की स्थापना क्यों की जाती है?”

  1. Bhhut hi sanchipt aur saargarbhit vishleshan kiya hai..🙏Pooj vidhan me sirf parampra ka nirvahan hi nahi hai ye bhi siddh hua..!..🙏👍

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