भगवान् शिव के ग्यारह रूद्र माने गए हैं| उनमें से पंचमुखी हनुमान दसवें रूद्र माने जाते हैं| हनुमान जी ने राम-रावण युद्ध के दौरान यह रूप धारण कर के अहिरावण का वध किया था|
अहिरावण रावण का भाई, तथा पाताल लोक का अधिपति था| युद्ध के दौरान एक रात अहिरावण सोए हुए राम और लक्ष्मण को पाताल लोक ले गया| और वहां उन्हें बंदी बना लिया|
अहिरावण का वध किए बिना वहां से राम लक्ष्मण को छुड़ा लाना संभव न था| और उसका वध केवल एक कठिन शर्त पूरा करके ही किया जा सकता था|
शर्त थी, कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम तथा ऊर्ध्व पांचों दिशाओं में जो दीप जलाकर रखे गए हैं, उन्हें फूंक मार कर एक साथ बुझाया जाय।
इस शर्त को पूरा करने हेतु हनुमान जी ने यह पांच मुखवाला रूप धारण किया|
इस शरीर के पांच अलग-अलग मुख थे। जो पांच दिशाओं की और उन्मुख थे। पश्चिम की ओर गरुड़ मुख था। उत्तर की ओर वाराह, पूरब की ओर वानर तथा दक्षिण की ओर नृसिंह तथा ऊपर की ओर हयग्रीव(अश्व) मुख था।
यह पांच मुखवाले हनुमान जी ही पंचमुखी हनुमान कहलाते हैं।
अपने पांच मुखों से हनुमान जी ने एक बार में फूंक मार कर इन पाँचों दिशाओं में रखे दीयों को एक साथ बुझाया और अहिरावण का वध किया।
दक्षिण और उत्तर भारत दोनों में ही भिन्न-भिन्न प्रकार के कष्ट और समस्याओं के निवारण हेतु हनुमान जी के इस पंचमुखी रूप की पूजा की जाती है।
पूर्व की ओर उनका सामान्य गदाधारी, वानर रूप है। इस वानर रूप की पूजा से मनुष्य के पिछले सारे दोष दूर होकर मन की शुद्धि होती है।इसी रूप की पूजा से शनि भी प्रसन्न होते हैं।
पश्चिम-अभिमुख, गरुड़ के पूजन से विविध प्रकार के जादू-टोना, टोटका तथा प्रेत- बाधा के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं।
उत्तराभिमुख, वाराह के पूजन से ग्रह-नक्षत्रों के अप्रिय प्रभाव मिटते हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। राहु-दोष भी समाप्त हो जाता है।
दाक्षिणाभिमुख नृसिंह के पूजन से शत्रु-भय का निवारण होता है। तथा उन पर विजय प्राप्त होती है। मंगल-दोष का शमन होता है।
ऊर्ध्वमुख हयग्रीव, ज्ञान प्रदान करता है। विजयी बनाता है। तथा उत्तम जीवन साथी की प्राप्ति होती है। तथा संतान प्राप्ति होती है।
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में प्रसिद्ध हनुमान-धारा मंदिर स्थित है।
कहा जाता है कि यह हनुमान जी की विश्राम स्थली है। राज्याभिषेक के पश्चात् जब राम को लंकादहन के कारण हनुमान की पूंछ की व्यथा मालूम हुयी तो उन्होंने धरती में बान मार कर एक सोता बना दिया। और हनुमान जी को उसके पानी से अपनी पूंछ की जलन को शांत करने कहा। यही स्थान है यह हनुमान-धारा मंदिर।
हनुमान जी का एक प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु के तिरुवल्लूर में भी है। यहाँ हरे ग्रेनाइट की एक चालीस फुट ऊंची पंचमुखी मूर्ती स्थापित है। जिसे पहले के ज़माने में रुद्रावर्णम कहा जाता था।
हनुमान जी ने सूर्य भगवान् से शिष्यत्व प्राप्त किया। वे संस्कृत भाषा के विद्वान और ज्ञानियों में अग्रगण्य, समस्त ज्ञान के प्रतीक हैं। वे अविवाहित चिर-कुमार हैं।
किन्तु दक्षिण में कुछ लोग मानते हैं, कि उन्होंने अपने गुरु सूर्य की पुत्री सूर्वचला से विवाह किया था। इस विवाह से उनका मकरध्वज नाम का एक पुत्र भी हुआ। मकरध्वज ने अहिरावण से लड़ने पाताल लोक गये पिता का साथ दिया था। अहिरावण पर विजय प्राप्त कर हनुमान जी ने बेटे मकरध्वज को पाताल लोक का राजा भी घोषित किया था।
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Very informative. I loved it.
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Thank you Ankita
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Very interesting and informative. 🙏👍
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Thank you Rajesh.
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Pahli baar pachmukhi hanumanji ke baare mein itni mahatvapoorna jaankari prapt kar bahut khushi hui.
Bahut bahut dhanyawad dada.
Yatish / Sushma.
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Dhanywad Yatish Sushma
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Pahli baar Panchmukhi Hanumanji ke baare mein itni mahatvapoorna jaankari mili. Bahut achha laga.
Bahut bahut dhanyawad dada.
Yatish/Sushma.
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Suman
Dada itne acche se aapne panchmukhi
Hanumanji ke baare mein aur unke guno aur utpatti ke baare mein likha ki hum jaise moodmati ko bhi samaj aa gaya
Aapne apne gyan ka yah jo sabhi ko
Bhejna chaloo kiya hai yah bahit sarahneeya hai
Pranam
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Tumko bahut dhanywad Suman
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Suman
Dada itne acche se aapne panchmukhi
Hanumanji ke baare mein aur unke guno aur utpatti ke baare mein likha ki hum jaise moodmati ko bhi samaj aa gaya
Aapne apne gyan ka yah jo sabhi ko
Bhejna chaloo kiya hai yah bahit sarahneeya hai
Pranam
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Thank you Chacha.. bahut hi badhiya informative blog hai 🙏
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Thank you Megha
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