महाशिवरात्रि — शिव आराधना की रात्रि

इस वर्ष, २०१९ में महाशिवरात्रि ४ मार्च को पड़ रही है. यह पुण्य लाभ का मंगल सुयोग है. आइये देखते हैं किस प्रकार इस व्रत के नियमों का पालन कर यह लाभ उठायें!shiv image

शिवरात्रि का त्यौहार  हिन्दुओं का बहुत पावन और महत्वपूर्ण  त्यौहार है. जिसे हर वयस्क हिन्दू बड़ी श्रद्धा और भक्ति से मनाता है. इस दिन वह उपवास व व्रत रखता है. शिवलिंग का अभिषेक करता है, पूजा करता है और सामूहिक रात्रि जागरण कर शिव स्तुति, मन्त्र जाप और कीर्तन कर शिव को प्रसन्न करता है.

भारत की प्राचीन परम्पराओं के अनुसार दिन की अपेक्षा रात्रि को विशिष्ट आराधना,  पूजा, मन्त्र साधना आदि के लिए अधिक उपयोगी और कारगर माना जाता है.

शक्ति के लिए नवरात्रि, लक्ष्मी के लिए दीपावली, शिवोपासना के लिए शिवरात्रि तथा मन्त्र साधना के लिए होली की रात्रि सिद्धिदात्री मानी जाती है.

दिन में सूर्य की किरणें  पूजा प्रार्थना के स्पंदनों के सुदूर क्षेत्रों और स्तरों तक प्रेषित करने में बाधा पहुंचाती  हैं.

विज्ञान भी मानता है कि सामान्य रेडियो सिग्नल दिन की अपेक्षा रात में अधिक स्पष्ट और श्राव्य होते हैं.

हर महीने कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा एक एक कला घटता जाता है. और त्रयोदशी / चतुर्दशी की रात उसकी अंतिम क्षीण कला भी विलोपित हो जाती है.  और ऐसा ही शिवरात्रि की रात होता है. इस तरह देखें तो शिवरात्रि हर महीने होती है.  किन्तु फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष  की त्रयोदशी / चतुर्दशी की रात्रि  ग्रहों की तथा पूरी खगोलीय स्थिति साधना  और शिवोपासना के लिए उत्तम मानी गयी है. अत: इसे महा शिवरात्रि कहा जाता  है.

चन्द्रमा को मन का अधिष्ठाता देवता माना  गया है.  और शिवरात्रि की रात जब उसकी  अंतिम कला का भी  लोप हो जाता है वह काल मन से जो हमें सत्य से दूर ले जाता है और माया  के छल में बाँध देता है, उससे छुटकारा पाने के लिए अत्यंत अनुकूल है.  इसी  काल को निशीथ काल कहते हैं. जब हमारे मन्त्र सिद्ध होते हैं.

अंग्रेज़ी महीने के फरवरी के अंत अथवा मार्च के प्रारम्भ में प्रतिवर्ष यह पुनीत अवसर (निशीथ काल) सुलभ होता है.

कहा जाता है, इस निशीथ काल में ही शिव जी ने लिंग रूप धारण किया था.

शिवपुराण के अनुसार जो पूजोपचार किये जाते हैं वे निम्न लिखित हैं;

१. अभिषेक:  शिव लिंग को शुद्ध जल अथवा गंगाजल, से स्नान कराया जाता है. फिर उसे स्वच्छ वस्त्र से पोंछ कर दूध से, और क्रमशः दही, घी, शहद और अंत में जल से हर बार स्नान कराने एवं स्वच्छ वस्त्र से पोंछने के बाद,

२. शिव लिंग को भस्म (विभूति) और सिन्दूर आदि से सजाया जाता है.

३. तत्पश्चात पुष्प से शृंगार कर उन्हें धतूरा, बेलपत्र और पान चढ़ाया जाता है.

४. गाय के दूध के घी का दीप जला कर शिवलिंग के सामने रखा जाता है, जो ज्ञान प्राप्त होने का प्रतीक है.

५ .इसके बाद  अगरु धूप दिखाई जाती है. जिससे शिव कृपा से धन संपत्ति की प्रार्थना का आयोजन होता है.

६. और अंत में शिव को मौसमी फल और मेवों का प्रसाद चढ़ाया जाता है.

इन सब उपचारों में अभिषेक  श्रेष्ठ व आवश्यक है. शिव जी को भी यह सबसे अधिक पसंद है. शिव ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल देव दानव तथा सम्पूर्ण विश्व के हित में उसे अपने गले में धारण किया था. इसके अतिरिक्त वे सदा तप साधना में निरत रहते हैं.अभिषेक की यह शीतलता प्रदायक वस्तुएं शिव को बहुत प्रिय हैं.

एक और उपचार, मंत्रोच्चार व कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण बहुत उपयोगी है.

“ॐ नम: शिवाय,

“शिव शंकर शम्भो,

“हर हर महादेव”

महामृत्युंजय मंत्र – “ॐ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्  उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ”

आदि मंत्रों का निरंतर जाप किया जाता है।

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10 Replies to “महाशिवरात्रि — शिव आराधना की रात्रि”

  1. Poojya dada aapne Mahashivratri ke pooja ki vidhi tatha Shivratri ki vistrut jaankari bahut saral shabdon mein likhi.Bahut dhanyawad tatha pranam charansparsh.

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