हिरण और सियार की दोस्ती – कहानी बचपन में सुनी हुयी -1

एक समय की बात है जंगल में एक हिरण अकेला भटकता हुआ किसी झाड़ के नीचे चला आया। उस झाड़ पर एक कौआ रहा करता था। दिन में तो वह यहाँ वहां घूमता फिरता। जहां कुछ चुगने मिल गया खाता। पानी मिलता तो पीता। शाम होते उस झाड़ के ऊपर लौट आता। एक दिन उसने शाम के वक्त झाड़ के नीचे एक हिरण को खड़ा देखा। तोकुतूहलवश झाँक कर देखा और हिरण से पूछा, “ डर लग रहा है? डरो मत मैं यहीं झाड़ के ऊपर रहता हूँ। दूर दूर तक देख लेता हूँ। अगर कुछ आशंका होगी मैं देखकर तुम्हें ताकीद कर दूंगा। समय रहते तुम भाग कर छुप जाना।

कौए का साथ पा हिरण बहुत खुश और आश्वस्त हुआ।कौआ न केवल खतरा होने के पहले ही उसे सचेत कर देता। बल्कि सुबह सवेरे दूर दूर तक अच्छी फसल वाले खेत को देख कर हिरण को बता देता। और वहां भी पूरी निगरानी रखता। किसान के आते ही कांव कांव करके उसे चिता देता। हिरण समय रहते भाग कर अपनी जान बचा लेता।यह क्रम रोज़ चलता। हिरण को रोज़ नि:शंक रहकर खाने को मिलने लगा।

एक दिन वहां से गुज़रते हुए एक सियार, इस हट्टे कट्टे हिरण को देख कर ठिठक गया।

फिर यहाँ-वहां देखकर वह चुपके से हिरण के पास चला आया।

कहने लगा मैं तुम्हें रोज़ शाम को यहाँ खड़ा देखता हूँ। तुम यहीं रहते हो क्या? मैं सोचता था कि मैं भी तुम्हारे साथ यहीं रात बिता लेता। मैं दिन भर यहाँ वहां घूमता हूँ। मुझे बहुत से सुन्दर खेत दिखते हैं। उनमें लहलहाती फसलें होती हैं। मैं तुम्हें उन खेतों तक पहुंचा भी सकता हूँ।

कौआ बेचारा दूर से देखकर तुम्हें बता भर सकता है। वक्त पड़ने पर वह तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।

हिरण उसकी मीठी मीठी बातों में आ गया। कौए को पता चला तो उसका माथा ठनका। उसने लाख कोशिश की कि हिरण बहकावे में न आये। पर उसकी सारी कोशिश बेकार गयी। हिरण ने न केवल सियार से दोस्ती कर ली बल्कि वह सियार के साथ उसके बताये खेतों में जाने भी लगा।

एक दिन सियार उसे एक ऐसे खेत में ले गया जहां किसान ने जानवरों से परेशान होकर जाल बिछा रखा था।

जैसे ही हिरण खेत में घुसा वह जाल में फंस गया। वह जितना जाल से निकलने की कोशिश करता उतना ही ज्यादा वह जाल में फंस जाता। रुंआसा होकर वह कातर निगाहों से देखने लगा। उजाला बढ़ने लगा था। डर था कि किसान आकर देखेगा तो उसे पीटेगा।

सियार मन ही मन खुश हो रहा था। जिस मौके की वह तलाश में था, आज उसे मिल गया था। किसान हिरण को मरते तक पीटेगा। हो सकता है किसी हथियार से उसकी जान ही ले ले। सियार के मन में लड्डू फूटने लगे, की आज इस मोटे ताज़े हिरण का कुछ गोश्त न सही हड्डियाँ तो चूसने मिल ही जायेंगी।

जब हिरण ने उसकी ओर कातर दृष्टि से देखा तो उसने हिरण से कहा, क्या करें मित्र आज ऐसी परीक्षा की घड़ी आयी है! आज एकादशी है। मेरा व्रत है। वरना मैं जाल का तांत कुतर कर तुम्हें खोल देता। सालों से मैं व्रत रखता आया हूँ। आज कैसे तोड़ दूं!

यहाँ जब कौए ने झाड़ के नीचे हिरण को नहीं पाया तो दूर दूर नज़र घुमाई। तो उसे हिरण इस तरह निराश और हताश दिखा। तो उसने देखा, बाड़ के बाहर किस उत्सुकता से किसान के आने का इंतज़ार कर रहा है।

वह फ़ौरन उड़ कर हिरण के पास पहुंचा। उसने चुपचाप हिरण से कहा अब किसान आने ही वाला होगा। आकर वह जाल खोल कर तुमको पकड़ लेगा। और सारा परिवार तुम्हें पका के खायेगा।

इस लिए जैसा मैं कहता हूँ तुम वैसा ही करना। किसान आयेगा तो मैं कांव करके बता दूंगा। वह जाल खोलेगा। तुम मरे-जैसे पड़ जाना। जैसे ही तुम्हारा जाल खुलेगा मैं फिर कांव करूंगा। कांव सुनते ही तुम उठकर भाग जाना। किसान आया तो अपने साथ कुल्हाड़ी लेकर आया। हिरण के जाल से निकलने की कोशिश में जाल उलझ गया था। तो कहीं कहीं उसे कुल्हाड़ी से काटना भी पड़ा था।

कौए के कांव करते ही हिरन फुर्ती से उठा और भाग निकला। किसान ने कुल्हाड़ी फेंक कर मारी। पर हिरण तेज़ी से भागा था। कुल्हाड़ी जाकर लगी उस सियार को जो उत्सुकता से इंतज़ार कर रहा था। उसे कुल्हाड़ी मस्तक पर लगी थी, और वह मर चुका था।

                              Image Source – Google

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3 Replies to “हिरण और सियार की दोस्ती – कहानी बचपन में सुनी हुयी -1”

  1. बहुत ही सुन्दर, शिक्षाप्रद, कथा 👌बचपन से सुनते आ रहे हैं, पर अभी भी सुनकर, बहुत अच्छी लगती है. 😊लालच, बुरी बला !!👍सुन्दर प्रस्तुति 👌👍🙏

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