राजा के बकरा ऐसे कान- कहानी बचपन में सुनी हुयी-2

( कहानी उस ज़माने की है जब राजे रजवाड़े हुआ करते थे )

एक राजा का नाई बूढ़ा होने के कारण मर गया। तो मंत्रियों ने नए नाई की व्यवस्था की। नए नाई का नाम था भिन्ना नाऊ।

जब वह राजा के बाल काटने आया तो उसे राजा के कान देख कर बहुत हैरत हुयी। राजा के कान बड़े भी थे और लटकते भी दिखते थे। राजा जहां कहीं भी जाते चाहे दरबार में जाना हो या सैर सपाटे में उनके माथे पर मुकुट और साफा बंधा होता। साफे को इस होशियारी से बांधा जाता कि राजा के कान या तो दीखते ही नहीं थे, या दीखते तो पूरे नहीं दिखते थे। पर बाल काटने वाले नाई से तो यहाँ सच्चाई छुप नहीं सकती थी।

जब इस नए नाई, भिन्ना को बाल काटने बुलाया गया तो उसे साफ़ हिदायत दे दी गयी की वह राजा के कानों के बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताएगा। और यह ताकीद की गयी कि यदि उसने किसी को भी यह बताया कि राजा के कान बकरे के कान जैसे बड़े और लटकने वाले हैं। तो उसकी खैर नहीं!

उसकी खाल खींचकर भूसा भर दिया जाएगा। पर यहाँ भिन्ना नाई ने राजा के कान का यह अजूबा देखा तो उसे किसी को बताये बिना रहा नहीं जा रहा था।

इधर वह इस अजूबे को किसी न किसी को बताने के लिए उतावला हुआ जा रहा था।

सजा की सोच कर वह कांप उठता था।

नाई लोग तो बातूनी होते ही हैं। ऐसा अजूबा देखकर भिन्ना नाई इतना उतावला हो रहा था कि बिना किसी को बताये उसे एक पल भी रहा नहीं गया।

उसे डर अलग लग रहा था, पर इतना बड़ा अजूबा, वह भी राजा के साथ! वह बिना किसी को बताये रह नहीं पा रहा था। ऊपर से खाल खिचाकर भूसा भरा देने की सजा भुगतने की वह सोच भी नहीं सकता था।पर इतना बड़ा रहस्य वह पचा भी नहीं पा रहा था। जंगल के रास्ते से घर इसलिए जा रहा था की रास्ते में कोई मिलेगा नहीं। पर कुतूहल भी समा नहीं रहा था। जंगल में एक बूढ़ा सा सागौन का पेड़ दिखा तो सोचा इसे ही बता देते हैं। चुल तो छूटेगी। “झाड़ किसको बताएगा!” सोच कर गया। पेड़ से लिपट गया, और धीमे से बोला, “ भिन्ना नाऊ! “ किसी को बताना नहीं। “राजा के बकरे ऐसे कान!”

बस, चुल पूरी हुयी। जान बची। जल्दी जल्दी कदम बढ़ाके घर पहुंचा। और धम्म से बिस्तर पर लेट गया।

बोला, थोड़ा लेटकर कुछ सोच रहा हूँ। लेटा रहा। और फिर सो गया।

जब उठा, नहाया। खाना खा के काम पे निकल गया।

समय बीता। वह झाड़ बूढ़ा तो था ही।

उसे काट दिया गया और राज दरबार के लिए उसकी लकड़ी से सारंगी, हार्मोनियम  और तबला बनाए गए।

फिर राज दरबार में साजिंदों ने सगीत की लहर बिखेर दी। इन्हीं तीनों वाद्यों को कलाकारों ने ताल मिलाकर बजाना शुरू किया ।

हारमोनियम बजाया गया तो,

“ धुन निकली  – राजा के बकरे ऐसे कान”

सारंगी ने पूछा, “ते से किन्ने कही?”

तबला बोल उठा,

मो से भिन्ना नाई ने कही।“

भरे दरबार में राजा की पोल खुल गयी। राजा गुस्से में तमतमा के उठा। और बोला, “बुलाओ भिन्ना नाऊ को!”                                                                                   *****          

इमेज : google

4 Replies to “राजा के बकरा ऐसे कान- कहानी बचपन में सुनी हुयी-2”

  1. बहुत आंनद आया पढ़कर. पुराने ज़माने की यादें ताज़ा हो गईं. मुझे कहानी पढ़कर याद आया की जब बच्चे छोटे थे तब उन्हें भी ये कहानी सुनाई थी. अब ये ही कहानी अपने पोत्रों को सुनाएंगे तो उन्हें भी बहुत मज़ा आएगा. वर्णन इतना सुन्दर है की सभी पात्र सामने दिखने लगते हैं.

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  2. गिरीश दादा इस बाल कथा को, बहुत भाव विभोर होकर सुनाते थे, मैंने भी अक्सर भतीजे, भतीजियों को सुनाया, और फिर मोंटू, चिन्टू को भी. 😊सभी बच्चों को ये कहानी बहुत भाती थी, इसमें संगीत के सुर और ताल का भी बहुत सटीक उपयोग कहानी सुनाते वक्त होता है, तो मुझे भी बहुत पसंद है. 😍🙏

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