मैं सेर-इक काकुन खाई – कहानी बचपन में सुनी हुयी-3

(यह कहानी मैंने अपनी दादी से सुनी)

एक किसान ने अपने खेत में चावल बोया था। जब फसल पक गयी तो उसे काटा जाने लगा। तब चिड़िये झुण्ड की झुण्ड आतीं खेत में गिरे हुए दानों को चुगतीं। किसान आता तो सब फुर्र से उड़ जातीं। एक चिड़िया के बच्चे गंगा के किनारे किसी वृक्ष के घोंसले में रहते थे। वह कुछ दाने अपने बच्चों के लिए चुगने में इतनी मशगूल हो गयी, कि किसान कब आया और उसे पकड़ लिया, वह जान नहीं पायी। बाकी चिड़ियें फुर्र से उड़ गईं। यह बेचारी पकड़ी गयी। फसल काटने के बाद इतने दिनों से झुण्ड के झुण्ड चिड़ियों के आकर तमाम खेत में कटाई के बाद के गिरे दोनों को चुग जाते। मजदूर लगाने पर भी किसान को जितना मिलना चाहिए था, मिल नहीं रहा था। किसान खीज चुका था। चिड़िये थीं कि जैसे ही कोई पास आया तो फुर्र से उड़ जातीं। किसान और मजदूर सब खीज चुके थे | इस बेचारी चिड़िया का नसीब ही खराब था जो किसान की पकड़ में आ गयी।

इतने दिनों की कोशिश के बाद वह बस इस एक चिड़िये को पकड़ पाया था। पकड़ी गयी ,तो चिड़िया ने बहुत चिरौरी की; मैंने तो खाया भी नहीं। गंगा के किनारे मेरे घोंसले में मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं। भूखे इंतेजार करते हैं की मैं आकर उन्हें कुछ खिलाऊँगी। खुद तो उड़ नहीं सकते। मेरी राह तकते रहते हैं।

मैं तो आज ही आयी। और चिड़ियों को चुगते देखा तो सोचा मैं भी कुछ बीन लूं। तो ले जाकर उन्हें खिलाऊं।

मैं खुश होकर दाने चुगने में लग गयी। ध्यान नहीं रहा। बाकी भाग गयीं। मैं पकड़ी गयी। मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चे भूखे मेरी राह तकते होंगे।

मैं वादा करती हूँ। आज के बाद मैं इस खेत में नहीं आऊँगी।

किसान तो बहुत दिनों से परेशान था। चिड़ियों के झुण्ड के झुण्ड चले आते थे। खेत का सारा दाना खा जाते हैं। सीला (दाना) बीनने इतने मजदूर का पैसा अलग जा रहा है।

अब तू पकड़ी गयी तो बच्चों का वास्ता दे रही है! मैं तुझे नहीं छोडूंगा। तुझे राजा के दरबार में पेश करूंगा। तभी तुम लोग मानोगी।

बेचारी चिड़िया उससे चिरौरी कर कर के हार गयी। वह नहीं माना। उसने तो मन में ठान ही लिया था कि इसे ले जाकर राजा के दरबार में पेश करूंगा। तभी ये चिड़िये मानेंगी।

हो सकता है राजा जी मेरी तकलीफ देखकर मुझे हुए नुक्सान की भरपाई ही कर दें।

और ऐसा पक्का ठान कर चिड़िया को लेकर वह राजा के दरबार की ओर चल पड़ा। चलते चलते रास्ते में उसे बकरियों का झुण्ड लेकर जा रहा चरवाहा मिला।

किसान को चिड़िया लिए हुए जाता देख उसने किसान से कारण पूछा। 

किसान कुछ जवाब देता; उसके पहले ही चिड़िया बोल उठी,

“ओ बकरी के चरवैया भैया,

“मैं सेर इक काकुन खाई।

“बाट धरे ले जाई।

“मोरे गंगा तीर बसेरा।

“रोयें मोरे गदेला, रूं चूं चूं ! रूं चूं चूं!”

चिड़िया की दर्द भरी पुकार सुनकर उसका दिल पसीज आया।

उसने अपनी बकरियों में से एक बकरी देने तक कह दिया। पर वह चिड़िया को छोड़ने ज़रा भी तैयार नहीं हुआ।

साफ़ मना कर दिया; नहीं आज तो मैं इसको राजा के दरबार में ले जाकर राजा से ही फैसला करवाउंगा।

चलते-चलते गायों का झुण्ड लिए गाय का चरवाहा मिला। उसे देखकर फिर चिड़िया  ने उससे भी फ़रियाद की:

 “ओ, गैया के चरवैया भैया,

मैं सेर इक काकुन खाई।

मैं बाँट धरे लै जाई।

मोरे गंगा तीर बसेरा।

रोयें मोरे गदेला, रूं चूं चूं ! रूं चूं चूं !”

गाय के चरवाहे ने भी किसान को समझाया। एक गाय लेकर छोड़ देने तक की मुरव्वत माँगी।

पर किसान के मन में एक ही धुन सवार थी कि राजा साहब से ही फैसला करवाउंगा ताकि समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाए।

गाय लेकर भी वह चिड़िया को छोड़ देने के लिए तैयार न हुआ।

बल्कि और तेज कदम बढाते हुए राजा के दरबार की तरफ बढ़ गया।

आगे चला तो इस बार उसे भैसों का चरवाहा मिला।

चिड़िया ने सोचा शायद भैस वाला एक भैंस देने का वादा करे तो किसान मान जाय।

चलते चलते अब भैसों का चरवाहा मिला।

उसे देख कर चिड़िया ने फिर आवाज़ दी।

“ ओ, भैसों के चरवैया भैया!

“मैं सेर-इक काकुन खाई;

“मैं बाँट धरे लै जाई।

मोरे गंगा तीर बसेरा।

रोयें मोरे गदेला, रूं चूं चूं ! रूं चूं चूं !”

चिड़िया की पुकार सुन कर भैसों के चराने वाले को भी बहुत दया आयी।

उसने एक भैंस के बदले तक,

चिड़िया को छोड़ देने की प्रार्थना की।

पर किसान को तो जैसे कोई जूनून संवार था;

कि जो फैसला होगा,

राजा के दरबार से ही होगा।

भैंस के बदले भी वह चिड़िया को छोड़ देने तैयार न हुआ।

अब चिड़िया भी बेचारी क्या करती!

अपने बच्चों की याद कर चुप हो गयी।

किसान उसे लेकर राज-दरबार भी पहुँच गया।

और गुहार लगाई;

“महाराज मैंने अपने खेत में चावल बोया था। फसल काट कर घर ले आया। पर खेत में जो दाने गिर जाते हैं, उन्हें बीनने का काम चल रहा था। मजदूर सीला बिनाई का काम कर रहे थे।

“रोज़ चिड़ियों के झुण्ड का झुण्ड आ जाते।

“सैकड़ों चिड़िया बीन बीन कर दाना खातीं और पकड़ने जाओ तो फुर्र से उड़ कर भाग जाती हैं। “आज बड़ी मुश्किल से यह एक चिड़िया पकड़ में आयी है।

“तो मैं इसे लेकर दरबार में हाजिर हुआ हूँ।

“महाराज, मुझे न्याय मिले।”

राजा ने पूछा,

“तुम कह रहे हो,

चिड़ियों के झुण्ड झुण्ड आते और खेत में पडा हुआ दाना खा जाते हैं!

पर तुम तो एक ही चिड़िया पकड़ कर लाये हो!”

“चिड़िया, तुम बताओ तुम्हें क्या कहना है?”

तो चिड़िया ने वही अपनी व्यथा कह सुनायी:

“देश के महाराजा जी,

“मैं सेर-इक काकुन खाई

“मैं बाँट धरे लै जाई।

“मोरे गंगा तीर बसेरा। रोयें मोरे गदेला, रूं चूं चूं ! रूं चूं चूं !”

चिड़िया ने राजा जी से यह भी बताया कि

“ मैंने तो एक भी दाना नहीं खाया। मेरे बच्चे गंगा के किनारे घोसले में रहते हैं।

“उड़ना तो दूर, अभी उनकी आँख भी नहीं खुली है। मैं उन्हीं के लिए जितना मैं आठ दस दाने मुंह में भर सकी, लेकर बच्चों के लिए ले जा रही थी।

“ मैं बीनती रह गयी।

“बाकी चिड़ियाँ किसान के आते ही उड़ गयीं।

“मैं बच्चों के लिए दो दाने और ले जाना चाहती थी। तो किसान भैया ने मुझे पकड लिया। राजा जी जो सज़ा मुझे देना है दीजिये। पर पहले मैं अपने बच्चों को खिला लाऊँ तब पकडवा लीजिये”

चिड़िया की ईमानदारी और उसकी परेशानी देख कर कौन उस पर ध्यान न देता।

राजा जी ने अपने कर्मचारियों को साथ भेजकर चिड़िया को उसके घोसले पहुंचवाया।

और आदेश दिया कि जब तक चिड़िया के बच्चे उड़ने लायक बड़े नहीं होते, राज दरबार से उन्हें अन्न पहुँचाया जाए।

किसान को भी दरबार से खाना खिलवाकर भेजा गया।

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2 Replies to “मैं सेर-इक काकुन खाई – कहानी बचपन में सुनी हुयी-3”

  1. 👌बहुत मजेदार, बाल कथा, 👌जिसे सुन कर बच्चे, रोते, रोते भी चुप जाते हैं 👌👏👏”रंग चूँ चूँ.. “वाली कहानी के नाम से ही ख़ुशी आ जाती है. 😊😍सुन्दर प्रस्तुति !
    👍

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  2. आज दिव्यम को भी पढ़ कर सुनवाई। उसे भी बहुत अच्छी लगी और बोला की बिट्टूल बुआ से भी सुन चुका हूं 🙂
    मैंने कहा अपनी फैमिली में सभी बच्चों ने यह कहानी सुनी है 😁
    धन्यवाद बड़ेपापा 🙏🏻

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