छठवीं राज कुमारी – कहानी बचपन में सुनी हुयी-4

बहुत पुराने ज़माने की बात है जब छोटे छोटे राज्य होते थे। एक बड़ा भला और दयालु राजा अपने राज्य में राज करता था। उस राजा का कोई बेटा नहीं था। पर छः बेटियाँ थीं। राजा उन्हें बहुत प्यार करता था। अक्सर समय निकाल कर वह शाम के समय उन सबको अपने पास बुलाकर उनसे बात किया करता। सब लोग साथ में बैठ कर कहानियां सुनाते, गाना गाते, कोई खेल खेलते और हंसी खुशी समय बिताते थे।

इसी तरह एक दिन छहों राजकुमारियां और राजा गपशप कर रहे थे। सब लोग खुश थे। जाने राजा को क्या सूझी, उसने बड़ी राज कुमारी को अपने पास बुलाकर उससे बड़े प्यार से पूछा, बेटी बताओ, “तुम किसके भाग्य का खाती हो?”

बड़ी राजकुमारी ने खुश होकर जवाब दिया, “आपके भाग्य का।” राजा ने खुश होकर अब, दूसरी राज कुमारी को अपने पास बुलाया और उसे प्यार करके पूछा, “बेटी, तुम किसके भाग्य का खाती हो?”

दूसरी राजकुमारी ने भी राजा को वही जवाब दिया, “आपके भाग्य का।”अब राजा ने तीसरी राज कुमारी को बुलाकर बड़े प्यार से पूछा, “ बेटी, तुम किसके भाग्य का खाती हो?”

तो तीसरी राजकुमारी को भी जवाब देने में कोई भी वक्त नहीं लगा। उसने भी झट से वही जवाब दिया, “आपके भाग्य का।” राजा बहुत खुश हुआ। और उसने सभी राजकुमारियों एक एक करके अपने पास बुलाया। और बहुत प्यार से उनसे पूछा,

“बेटी तुम किसके भाग्य का खाती हो?” सभी पाँच बेटियों ने वही जवाब दिया। पर जब सबसे छोटी, छठवीं राज कुमारी से राजा ने उसी प्यार से पूछा, “ बेटी, तुम किसके भाग्य का खाती हो?”

तो छोटी राजकुमारी ने वह जवाब नहीं दिया। उसने कहा, “ मैं अपने भाग्य का खाती हूँ।”

छठवीं राजकुमारी के जवाब से सब लोग चौंक गए।

राजा भी।

राजा ने उससे कहा, क्या तुम मेरी, राजा की बेटी हो इसीलिए वैसा खाना नहीं खातीं जैसा यह सब तुम्हारी बड़ी बहनें खाती हैं? क्या तुम राजा से वैसा प्यार नहीं पातीं जैसा तुम्हारी यह सब पाँच बड़ी बहनों को मिलता है? क्या तुम्हें भी उनकी ही तरह राजा के महल की सुख-सुविधा और नौकर चाकर की सेवा नहीं मिलती?

“ क्या तुम उन सबकी तरह राजा के आलीशान महल में नहीं रहतीं?”

“ बोलो, जवाब दो।”

छठवीं राज कुमारी ने कहा, यह मेरा ही भाग्य तो था की मैं आपकी, एक राजा की बेटी बनी।

तो मैं अपने ही भाग्य का ही तो खाती हूँ।

राजा थोड़ी देर तो स्तब्ध रहा। फिर सोच कर बोला, मैं तुम्हें आज अभी इस महल और इस राज्य से बाहर भेज देता हूँ।

तुम्हें वहां रहना होगा महल की सुख सुविधा की चीज़ लानी होंगी और नौकर चाकरों की सेवा भी प्राप्त करनी होगी।

बोलो, हो तैयार? तब तुम देखोगी की तुम मेरे भाग्य का खाती हो कि अपने।

बोलो, हो तैयार?

राजकुमारी बोली जी, पिता जी। यदि मैं अपने भाग्य का खाती हूँ तो मुझे यह सब वहां भी प्राप्त हो जाएगा।”

 राजा ने उस शाम अपने नौकरों को आदेश देकर छठवीं राजकुमारी को राज्य की सीमा के बाहर छोड़ आने का आदेश देकर राजकुमारी को अपने देश की सीमा के बाहर छुड़वा दिया। पर खुफिया तौर से कुछ कर्मचारियों को आदेश दिया की राजकुमारी का ख़याल रखें, उसे कुछ तकलीफ हो तो राजा को सूचित समय से करें।

जो कर्मचारी राजकुमारी को छोड़ने गए थे, उन्होंने देखा कि जैसे ही वह लौट रहे थे वहां देखते देखते एक महल तैयार होने लगा। और नौकर चाकर आकर राजकुमारी की सेवा शुश्रूषा करेने लगे। उनके तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा!

राजा ने राजकुमारी की चिंता में रात करवट बदल-बदल कर बिताई। सुबह राजा को आकर सब बताया।

राजा ने स्वयं जाकर देखा कि जैसा बताया गया ठीक वैसे ही एशो-आराम में छठवीं राज कुमारी राजा के महल से दूर निर्जन वन में जाकर भी वैसे ही महल और सुख सुविधा में रह रही थी।

इससे शिक्षा मिलती है कि हमें जो जैसा मिलता है, अपने स्वयं के भाग्य से मिलता है। किसी और के नहीं।

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