A1बीटाकेसिन तथा A2 बीटाकेसिन दूध – (देसी और विदेशी गाय के दूध)  

पिछले दिनों हमारे साढूभाई एवं साली साहिबा का आना हुआ। चाय के बाद मैंने सुना भाई सा: साली साहिबा से पूछ रहे थे यहाँ तो सभी दूध A2 होगा या A1 भी मिलने लगा! हमारे घर सिवनी मध्य प्रदेश में तो हमेशा हमने घर में गाय, भैंस पाली थीं। हम गाय भैस की सेवा भी करते थे। पर कभी हमने A2, A1 दूध नहीं सुना था।

बात दिमाग में अटक गयी। हमने तो दूध का ऐसा वर्गीकरण नहीं सुना था। फिर कभी समय मिलने पर खोज की तो पता चला, जर्सी गायों का दूध A1 होता है।पहले के ज़माने में भारत में केवल देसी गाय ही होती थीं। और अक्सर लोग घर में गाय और भैंस भी रखते थे। अहीर चरवाहे होते थे। वे ही सुबह आकर दूध दुह जाते थे। और करीब आठ-नौ बजे के बीच आकर मवेशियों को चराने ले जाया करते थे। और शाम गाय भैंस स्वयं घर पहुँच जाती थीं। हम लोग उनकी ‘सार’ में सफाई करा लेते थे। हुआ तो सुबह के वक्त गायों के कान और बदन में लग गयीं किल्नियाँ निकाल देते थे। कभी उनके लटके गलों को सहला देते थे। कभी कभी लोहे के ब्रश से उनके पीठ पेट को घिस देते थे।

इसी तरह देसी भैंस भी हुआ करती थीं। गाय डेढ़ दो सेर दूध देती तो भैंस तीन चार सेर।

जो बछड़े वाली गाय होतीं और पड़वे-पड़िए वाली भैंस होतीं, केवल वही हमारे साथ घर में रहतीं और जब दूध देना बंद करतीं तो उन्हें गाँव भेज दिया जाता।

हम बच्चे दूध ही पीते, चाहे गाय का हो चाहे भैंस का। उसी का दही बन जाता। उसी का मही। दही को मथानी से मथ कर अम्मा नैनू निकाल लेतीं। मही खाने और पास पड़ोस के लोगों को इस्तेमाल के लिए दे दिया जाता। नैनू इकट्ठा हो जाता तो अम्मा उसे उबाल कर घी बना लेती थीं। और कहीं भी जाते तो सभी जगह यही तरीका देखते। पर फिर क्रमश: बाहर पढने गए तो दूध खरीदना पड़ा। पहले तो डेरियों में भी देशी गाय भैंसों का दूध खरीद लेते थे। डेरियों में भी पहले देसी गाय भैसों का दूध दही मिलता था।

पर फिर क्रमश: डेयरी वाले जर्सी गायें और भैंसे ले आये। जर्सी गाय और भैंस दूध ज्यादा देती थीं। इसलिए ऋण ले लेकर जर्सी गाय और भैंसों का दूध बेचने लगे। जर्सी गाय दूध भी ज्यादा देती हैं। और दूध भी ज्यादा सफ़ेद और ज़्यादा गाढ़ा होता है।

 तो मैंने अपने मेहमानों से पूछा कौन सा अच्छा होता है, A2 या A1 ? तो उन्होंने कहा दोनों ही ठीक हैं; परन्तु A2 सुपाच्च्य होता है।

फिर खोजने पर मुझे पता चला कि देसी गायों के दूध में A2 बीटाकेसिन प्रोटीन होता है। जबकि A1 बीटाकेसिन प्रोटीन जर्सी गाय और जर्सी भैंस के दूध में पाया जाता है।

जब A1 दूध छोटी आंत में पहुंचता है तो वह बीटा-केसो-मोर्फिन-7 (BCM-7) नाम का पेप्टाइड पैदा कर देता है। यह पेप्टाइड पेट में गड़बड़ी पैदा करने वाला राक्षस है। जो पाचन क्रिया बिगाड़ देता है।

A2 दूध भारतीय गायों से प्राप्त होता है। जितनी भी विभिन्न प्रजाति की देसी गाय होतीं हैं उनमें पीठ पर कूबड़-सा उभार होता है। इस कुब्बा अथवा कूबड़ से लेकर पूंछ तक चमड़ी के नीचे एक नाड़ी होती है। इस नाड़ी को सूर्यकेतु नाड़ी कहते हैं।

कहा जाता है कि है कि सूर्य के प्रकाश में यह नाड़ी स्वर्ण बनाकर गाय के दूध को पीलापन दे देती है। मूत्र भी अधिक पीला हो जाता है। आयुर्वेद में गाय का दूध और गाय का मूत्र  औषधि के तौर पर प्रयोग किया जाता है और कुछ लोगों का मानना है कि ऐसी गाय का दूध एवं मूत्र कैंसर का प्रतिकार करता है।  

देसी गायों में ४३ से ऊपर जाति की गायें हैं। उनमें से कुछ के नाम; साहीवाल, हरयाणवी, थारपारकर, कांकरेज आदि हैं।

दूध तो दूध देसी गायों का गोबर कंडे बनाने और लीपने के काम में भी लिया जाता है।

** सभी चित्र गूगल से…

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